मन को कैसे अपने अधीन करें ? How To Control Your Non Bounded Willing’s
How To Control Your Non Bounded Willing's
How To Control Your Non Bounded Willing’s:- नमस्कार दोस्तों, आपने अक्सर एक समस्या का सामना किया होगा जो है आपका मन। जीवन में ऐसी बहुत सारी परिस्थितियां होती है जब हम हमारे मन के वशीभूत होकर समस्याओं के चंगुल में फंस जाते हैं। मैं आपको बता दूं मन कोई बुरी चीज नहीं है बल्कि जब हम मन के वशीभूत होते हैं तो यह अपने आप में एक विशाल समस्या का रूप धारण कर लेता है। आज किस ब्लॉग में है इस विषय पर विस्तार से बात करने वाले हैं कि किस तरह हम अपने मन को नियंत्रण में कर समस्याओं से निजात पा सकते हैं?
1. मन और हमारी इन्द्रियां –
➽ हमारा मन हमारे जीवन का केंद्र बिंदु होता है और इसको अपने अनुसार कैसे चलाया जाए यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल है। दोस्तों हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है हमारी आत्मा । हमारी आत्मा हमेशा निर्मल स्वभाव में होती है और यही इसकी मूल अवस्था होती है। इसके बाद हमारी बुद्धि महत्वपूर्ण तत्वों में से एक होती है। तीसरे स्थान पर हमारा मन आता है जो कि हमारी इंद्रियों से सबसे जल्दी प्रभावित होता है। हमारी इंद्रियों द्वारा Outer दुनिया से प्राप्त किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के विचार, दृश्य और वस्तुएं सभी का प्रभाव हमारे मन पर सबसे पहले होता है।
➽ हमारी ज्यादातर इच्छाएं हमारी इंद्रियां निर्धारित करती हैं और मनन इच्छाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी भी इच्छा के बारे में सर्वप्रथम मन ही निर्णय लेता है उसके पश्चात ही बुद्धि उस पर अपना निर्णय देती हैं। परंतु यदि मन हमारी बुद्धि से मजबूत हो जाता है तो फिर सारे निर्णय मन अपने तक ही सीमित रख लेता है। हमें कुछ वक्त के लिए लव सकता है कि हम स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं, परंतु वास्तव में हमारा मन हमें लोगों की प्रतिक्रियाओं और आसपास की परिस्थितियों का गुलाम बना देता है। मन के अधीन लोगों को लोग आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं और उनका फायदा उठा सकते हैं। जैसे ही लोग हमारे सामने, हमारे मन को पसंद आने वाली चीजें रखेंगे तो हम उनके प्रति आकर्षित हो जाएंगे और अपने आपको उन लोगों का या फिर उन चीजों का गुलाम और आसक्त बना लेंगे ।
2. मन और अच्छे बुरे की पहचान –
आपका मन केवल चीजों के आकर्षण और उनसे मिलने वाले संतुष्टि को समझता है। मन किसी भी कार्य के होने वाले दूरदर्शी परिणाम और आने वाली समस्याओं पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता है। किसी भी कार्य का अच्छा या फिर बुरा परिणाम आंकने की क्षमता मन के पास नहीं होती है। उदाहरण के लिए दोस्तों अगर आपको किसी अच्छे खाने की खुशबू आती है तो सबसे पहले आप का मन ही आपको बोलता है कि मुझे यह खाना खाना चाहिए फिर चाहे आपको उस खाने से कोई नुकसान हो या फिर वह खाना आपके फायदे का हो । इससे मन को कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि यह समझने के लिए हमें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना होता है क्या वाकई में हमें वह खाना लेना चाहिए अथवा नहीं। आपकी इंद्रियों को जो भी चीज दिखाई देती है उसके आधार पर मन अपना Primary Reaction देता है। जब हमारा मन इंद्रियों के वशीभूत होकर उनको प्रत्येक अच्छे लगने वाली चीज को उपलब्ध करा देता है तो फिर यह हमारी आदत में आ जाता है अब चाहे वह अच्छा काम हो या फिर बुरा काम हो।
3. मन को अपने अधीन करना –
➽ मित्रों हम बात करेंगे कि हम को किस तरह मन को हमारे अनुसार चलाना है ना कि अपने आपको मन के अनुसार । आपको सबसे पहले समझना पड़ेगा कि आप की इंद्रियां और आपका मन आपका अस्तित्व नहीं है। मारी एंट्रियां पूरी तरह हमारे जीवन को नहीं चलाते बल्कि यह तो हमें दुनिया भी चीजों का आभास कराती हैं और इनपुट देती हैं। इंद्रियों के द्वारा दिए गए इनपुट पे होने वाला रिएक्शन पूरी तरह हमारा होना चाहिए ना कि हमारे मन का। हमारा जीवन हमारी इंद्रियां नहीं बल्कि हमारी बुद्धि और हमारी आत्मा होती है। आपको अपनी इंद्रियों को राजा समझ कर उनको ताज पहनाने की आवश्यकता नहीं है,बल्कि अपनी चेतना को इतना विकसित करना है कि आप अपनी इंद्रियों का उपयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने में कर सके।
➽ अगर आपकी इंद्रियां आपके मन पर हावी हो जाती है, आपकी बुद्धि पर हावी हो जाती हैं तो फिर आप वही काम करते हैं जो आपकी इंद्रियों को सुकून देता है ना कि वह काम जो आपके जीवन को सुकून देता है। आपकी इंद्रियां आपके एक लंबे और उज्जवल भविष्य के लिए आनंद प्रदान करने का नहीं सोचती बल्कि उनको बस कुछ क्षणों का आनंद चाहिए होता है। एक अच्छा और लंबा जीवन जीने के लिए आपको अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना होगा और अपनी इंद्रियों से वह सभी कार्य संपन्न करवाने होंगे जो आवश्यक हैं।
4. मन और बुद्धि का संयोजन –
➽ आपको अपने विचार करने की शक्ति को थोड़ा धीमा करने की आवश्यकता है। मैं ऐसा इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि जब एक के बाद एक विचार हमारे दिमाग में आते रहते हैं तो उसके पास इन विचारों का Analysis करने का वक्त नहीं होता है। आपकी इंद्रियां इनपुट प्राप्त करती है और अपना रिएक्शन दे देती है और आपकी बुद्धि को उस पर विचार करने का वक्त ही नहीं मिल पाता है। जीवन में ऐसी बहुत सारी घटनाएं और परिस्थितियां बनती है कि हमें उस वक्त तुरंत प्रभाव से React करने की आवश्यकता नहीं होती है। हमें अपने मन को बीमा करना होता है और परिस्थिति पर विचार करने के बाद ही उस पर अपना रिएक्शन देना होता है। सभी पहलुओं के बारे में जानकर और अच्छे तथा बुरे परिणाम को ध्यान में रखकर ही आखरी फैसला लेना चाहिए।
➽ आपको अपने मन को आदत तो डालनी होगी कि वह इंद्रियों की बजाए आपकी बुद्धि की सुने और उसे प्राथमिकता दें। जैसा कि मैंने आपको बताया मन कभी भी अच्छा और बुरा नहीं सोचता है बल्कि यह दिए गए इनपुट पर अपना रिएक्शन देने का काम करता है। इसका यह फायदा है कि हम मन के द्वारा दिए गए और रिएक्शन को अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके बदल सकते हैं।
5. बुद्धि का विकास –
➽ मित्रों अब बात आती है कि हमारी बुद्धि सही निर्णय लें इसका निर्धारण कैसे होगा? यह चीज में आपको पहले भी ब्लॉग में बता चुका हूं कि जिस तरह का ज्ञान हमारे मस्तिष्क में संचित होता है उसी के आधार पर हमारी बुद्धि काम करती है। अगर किसी परिस्थिति को लेकर हमारे मस्तिष्क में नकारात्मक समाधान उपलब्ध है,तो वह केवल नकारात्मक समाधान ही प्रस्तुत करेंगी। परंतु यदि हमने ऐसा ज्ञान अर्जित किया है,जो मुश्किल वक्त के समय हमें सही निर्णय लेने में मदद करें तो हमारी बुद्धि भी उसी प्रकार के अच्छे और सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करेगी। इसलिए यह भी अति आवश्यक है कि अपनी बुद्धि को अच्छे और बुरे कार्यों में फर्क करवाने का ज्ञान उपलब्ध कराएं।
➽ दोस्तों इस से टॉपिक के बारे में जितनी बातें करें उतना कम है परंतु फिर भी मैंने कोशिश की है कि आप को कम से कम शब्दों के माध्यम से समस्या की असली जड को समझाने का प्रयास किया है और साथ में यह भी बताया है कि हम अपनी बुद्धि को किस तरह मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
धन्यवाद !